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दुःख की असली वजह को ऐसे सुख में बदले This Post Design By The Revolution Deshbhakt Hindustani

दुःख की असली वजह को ऐसे सुख में बदले

दुख की असली वजह, कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे ही अंदर है। हमारी सोच और विचारों की वजह से हमने कोई एक्शन लिया, और अब उस एक्शन के रिजल्ट में- हमें या तो खुशी मिल रही है या फिर दुख। आज की हमारी कहानी आपको बताएगी, कि जाने-अंजाने, हम कैसे, अपने ही दुख कारण बन जाते हैं। काफी समय पहले, एक राजा था। एक दिन उसके दरबार में, एक ज्योतिषी आया। उसने राजा से कहा, कि'' महाराज, आपके भाग्य में इतना ज्यादा धन है, कि आपकी 7 पीढि़यों तक खत्म नहीं होगा। ज्योतिषी चला गया, लेकिन राजा चिंता में पड़ गया, यह सोचकर कि उसकी 8वीं पीढ़ी का क्या होगा। राजा को इस बात की इतनी स्ट्रेस हो गई कि वो बीमार रहने लगा। कई वैद्य, हकीम, साधु और योगी आए, लेकिन उसे ठीक नहीं कर सके। फिर एक दिन, दरबार में एक सन्यासी आया, उसने कहा कि मैं, इन्हें ठीक कर सकता हूं। उसने राजा के सिपाहियों को कहा, - जाओ, और एक ऐसे आदमी का कुर्ता लेकर आओ, जिसे कोई चिंता ना हो।

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राजा के सिपाही, एक बेफिकर और खुश आदमी की खोज में लग गए। गली-मुहल्ले, नगर-गांव, सब छान मारा, लेकिन कोई ऐसा आदमी नहीं मिला, जिसे कोई चिंता न हो। सिपाही जंगल की ओर बढ़ रहे थे, तभी, एक पेड़ पर, लंगोट पहने एक मस्तमौला आदमी, बांसुरी बजाते हुए दिखा। उसके चेहरे की खुशी देखकर ही पता चल रहा था कि उसे किसी चीज की फिक्र नहीं है। सिपाही ने उसे आदेश दिया- तुम्हें हमारे साथ, राजा के पास चलना होगा। वो कहने लगा- राजा से मुझे क्या लेना-देना। फिर सिपाही ने कहा- अच्छा ठीक है, अगर तुम्हें नहीं जाना, तो रहने दो, लेकिन अपना कुर्ता हमें दे दो। वो हमें चाहिए। वो बेफिकरा आदमी बोला- कुर्ता। मेरे पास कुर्ता कहां है, मुझे कभी कुर्ते की जरूरत, पड़ी ही नहीं।

यह देखकर, सिपाही वापस दरबार पहुंचे और उन्होंने सारी बात, राजा को बताई। तब जाकर, राजा को समझ में आया कि सबसे बड़ा अभाव, तो सिर्फ मन में है। बिना कुर्ते के भी, वो आदमी सुखी है, और मैं, 7 पीढि़यों के लिए संतोष करने की बजाय, 8वीं पीढ़ी के लिए, दुख और चिंता में ढूब गया। हो सकता है कि हमारी सोच या विचारों ने, अतीत में कुछ ऐसे बीज बो दिए हैं, जिनके परिणाम के रूप में, हमें आज कड़वाहट मिल रही है।